#कांग्रेस_पार्टी के कोषाध्यक्ष और सांसद #अहमद_पटेल, #सीपीआई (एम) के महासचिव #सीताराम_येचुरी, #सीपीआई के महासचिव #डी_राजा, #डीएमके नेता और सांसद #कनिमोझी, #राजद नेता और सांसद #मनोज_झा ने आज भारत के #राष्ट्रपति से मुलाकात की और एक ज्ञापन सौंपा।इन नेताओं ने भारत के राष्ट्रपति को बताया कि दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोगों की जानें चली गई। इससे पहले एक कैबिनेट मंत्री, सहित भाजपा के वरिष्ठ सत्ताधारी नेताओं द्वारा नफरत भरे भाषण दिए गए और लोगों को हिंसा के लिए उकसाया गया। उन नेताओं की जांच करने के बजाय दिल्ली पुलिस, केंद्रीय गृह मंत्री के निर्देश पर एक ऐसी स्क्रिप्ट पर काम कर रही है, जिसके जरिए सीएए-एनपीआर-एनआरसी से जुड़े शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को इस हिंसा से जोड़ा जा रहा है। नतीजतन, कई निर्दोष कार्यकर्ताओं, जाने-माने बुद्धिजीवियों और राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है। इस तरह से दिल्ली पुलिस साजिश करने वालों व सांप्रदायिक हिंसा के असली अपराधियों की पहचान करने और उन्हें दंडित करने की बजाए उन्हें बचाने का काम कर रही है। इस हिंसा के पीड़ितों को गिरफ्तार किया जा रहा है जबकि अपराधियों को खुला छोड़ दिया गया है। राष्ट्रपति ने प्रतिनिधिमंडल को सुना। ज्ञापन को स्वीकार किया और कहा कि वे इसकी जांच-पड़ताल करवाएंगे। कोविड महामारी प्रोटोकॉल के कारण, राष्ट्रपति भवन ने प्रतिनिधिमंडल को 5 सदस्यों से अधिक ना रखने के लिए प्रतिबंधित किया था। इसलिए अन्य विपक्षी पार्टी के नेता जो इस ज्ञापन से सहमत हैं, प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा नहीं हो सके। ***** ज्ञापन की पूरी पूरी विषय वस्तु इस प्रकार है: श्री राम नाथ कोविंद, भारत के राष्ट्रपति, राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली, दिल्ली 110004 विषय: दिल्ली पुलिस द्वारा दिल्ली दंगों की जांच और पूछताछ के संबंध में ज्ञापन आदरणीय राष्ट्रपति जी, हम आपको इस बारे में अपनी गहरी चिंता व्यक्त करने के लिए लिख रहे हैं कि दिल्ली पुलिस सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं की जांच कर रही है जो 23 से 26 फरवरी, 2020 के बीच उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई थी, जिसमें 53 लोगों की जान चली गई थी। दिल्ली पुलिस ने विशेष जांच दल (SIT) की स्थापना की है और इसकी विशेष सेल दिल्ली दंगों के पीछे की साजिश के पहलूओं की भी जांच कर रही है। हालाँकि, हिंसा के दौरान खुद दिल्ली पुलिस द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में गंभीर सवाल पैदा हुए हैं और यह भी कि जिस तरीके से पुलिस सीएए/एनआरसी / एनपीआर विरोधी आंदोलनों में भाग लेने वाले कार्यकर्ताओं और युवाओं का उत्पीड़न कर रही है और उनको हिंसा के अपराधियों के रूप में झूठा फंसाने की कोशिश कर रही है। इस तरह से बनाए गए षड्यंत्र के तहत अब राजनीतिक नेताओं को झूठा फंसाना शुरू कर दिया है। सीपीआई (एम) के राष्ट्रीय महासचिव, ख्याति प्राप्त सांसद सीताराम येचुरी, और प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं के नाम भी उस सामग्री में सामने आए हैं जो सार्वजनिक की गई है। यह परेशान करने वाला घटनाक्रम है जो इस तरह की जांच के तरीके पर गंभीर सवाल उठाता है। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कई रिपोर्टों और कई वीडियोज में ऐसी सामग्री मौजूद है जिसमें हिंसा में पुलिस की मिलीभगत नजर आ रही है या पुलिस भीड़ को पथराव करने के लिए निर्देशित कर रही है अथवा जब भीड़ हिंसा में शामिल हो रही थी तो पुलिस दूसरी तरफ देख रही थी। हिंसा के दौरान, परेशान करने वाला एक वीडियो सामने आया था जिसमें दिखाया गया है कि वर्दीधारी पुलिसकर्मी सड़क पर घायल पड़े जवानों के साथ मारपीट कर रहे थे और उन्हें बार-बार लाठियों से पीटते हुए राष्ट्रगान गाने के लिए मजबूर कर रहे थे। घायल पड़े युवकों में से एक, फैजान ने कुछ दिनों बाद अपनी चोटों के कारण दम तोड़ दिया। एक अन्य घटना में, एक डीसीपी एक भाजपा नेता के बगल में खड़ा था, जो प्रदर्शनकारियों के खिलाफ हिंसा भड़का रहा था और उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर उन्होंने सड़क खाली नहीं की, तो वह खुद ऐसा करेंगे। डीसीपी, अतिरिक्त आयुक्तों और एसएचओ सहित हिंसा में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप लगाते हुए कई शिकायतें दर्ज होने के बावजूद, यह प्रतीत नहीं होता है कि हिंसा में शामिल पुलिसकर्मियों की पहचान करने और उनके खिलाफ कार्यवाही सुनिश्चित करने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम किए गए हैं।पुलिस हिरासत में पुलिस द्वारा हमले और प्रताड़ित करने वाले लोगों के कई दस्तावेज भी हैं, जिनमें खालिद सैफी भी शामिल है, जिसे 26 फरवरी को खुरेजी से उठाया गया था, और जब उन्हें बाद में मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया तो उसके दोनों पैरों में गंभीर चोटें आई हुई थीं। भड़काऊ भाषण देने वाले भाजपा नेताओं, की भूमिका पर आरोप-पत्रों में उल्लेखनीय चुप्पी जांच की निष्पक्षता पर गंभीर चिंता पैदा करती है। दिसंबर 2019 के बाद से, सत्तारूढ़ दल के नेताओं द्वारा सीएए-विरोधी प्रदर्शनों में शामिल लोगों के खिलाफ हिंसा के लिए सार्वजनिक रूप से उकसाया और भड़काया गया है, जिसमें कैबिनेट मंत्री द्वारा “देशद्रोहियों को गोली मारो” जैसे नारे लगाए गए हैं। वास्तव में जब लोगों ने साहस करके भाजपा नेताओं-कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर, परवेश वर्मा, सत्यपाल सिंह, जगदीश प्रधान, नंदकिशोर गुर्जर और मोहन सिंह बिष्ट के खिलाफ शिकायतें दर्ज कीं और उन पर हिंसा में भाग लेने का आरोप लगाया गया तब भी, दिल्ली पुलिस द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गई।जहां दिल्ली पुलिस ने हिंसा में अपने स्वयं के कर्मियों और भाजपा नेताओं की भूमिका की ओर से आंखें मूंद ली हैं, वहीं जांच की दिशा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के अपराधिकरण की नजर आ रही है। उसे एक ऐसी साजिश के रूप में पेश किया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप दिल्ली में दंगे हुए। चार्जशीट में पुलिस द्वारा वर्णित घटनाक्रमक्रम, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं, दिल्ली में विभिन्न धरनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा दिए गए भाषणों को ऐसे क्रम से पेश किया गया है कि इनमें से प्रत्येक दंगों की ओर लक्षित था। ऐसा प्रतीत होता है कि पूरी जांच पहले से ही तय कर लिए गए एक साजिश के सिद्धांत को सच साबित करने के लिए की जा रही है, जिस बारे दंगों की कोई भी जांच शुरू होने से पहले ही, मार्च 2020 में लोकसभा में गृह मंत्री द्वारा प्रस्तावित किया गया था।विशेष सेल द्वारा की जा रही जांच इस ‘साजिश’ के बारे में एफआईआर (59/2020), जिसमें गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) को लागू किया गया है, का इस्तेमाल विरोध प्रदर्शनों में शामिल युवा कार्यकर्ताओं को केसों में फंसाने और पकड़ने के लिए किया जा रहा है। पिछले छह महीनों में, इन विरोध प्रदर्शनों के समर्थकों और इनमें भाग लेने वालों को पुलिस द्वारा तलब किया जाता है, परेशान किया जाता है और झूठे बयान दर्ज करवाने के लिए धमकी और जबरदस्ती सहित लंबी पूछताछ की जाती है। इस तरह साजिश के बारे में ‘सबूत’ गढ़े जाते हैं। विभिन्न कार्यकर्ताओं और नागरिक समाज के नेताओं, जिनको दंगों में उनकी भूमिका के नाम पर गिरफ्तार किया गया है, के बारे में पुलिस भी दुर्भावनापूर्ण तरीके से खुलासा करने वाले बयानों (जिनमें कोई स्पष्ट सबूत नहीं है) को लीक कर रही है। पुलिस का ऐसा आचरण जनमत को प्रभावित करने और उन्हें बदनाम करने की कोशिश ही है।इसलिए दिल्ली पुलिस द्वारा चल रही जांच विश्वास पैदा नहीं करती। पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगा प्रभावित क्षेत्रों से “कुछ हिंदू युवाओं” की गिरफ्तारी किए जाते समय “उचित देखभाल और एहतियात” बरती जाने सम्बन्धी विशेष पुलिस आयुक्त (अपराध) के हालिया आदेश को देखते हुए जांच की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठते हैं। राज्य की कानून व्यवस्था में जनता के विश्वास को बहाल करने के लिए एक विश्वसनीय और निष्पक्ष जांच महत्वपूर्ण है। देश में असंतोष और विरोध का दमन करने और उसे चुप करने के उद्देश्य से मनमर्जी की गिरफ्तारियों की अनुमति नहीं दी जा सकती । इसलिए हम आपसे अनुरोध करते हैं कि आप भारत सरकार को निर्देशित करें कि वह इस हिंसा की जाँच के लिए कमीशन ऑफ़ इन्क्वायरी एक्ट, 1952 के तहत सेवारत / सेवानिवृत्त जजों के नेतृत्व में जाँच करवाए। सादर,डी राजा, CPI सीताराम येचुरी CPI (M) अहमद पटेल, INCसुश्री कनिमोझी, DMKप्रो. मनोज झा, RJD